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Samajik Mulyon Ke Ekanki

Samajik Mulyon Ke Ekanki

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ISBN: 8173151385

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“मैंने निश्‍चय कर लिया है माँ कि साधना को हर महीने पाँच सौ रुपए वेतन के दूँगा। यह पैसा उसका अपना होगा, केवल उसका।”
“कैसी बात कर रहा है, बेटे! क्या दुनिया में कभी किसी ने ऐसा किया है, जो तू कर रहा है?”
“किसी ने किया हो या न किया हो, लेकिन मैं एक ऐसी मिसाल कायम करूँगा, जिससे लोग महिलाओं के परिश्रम को सम्मान देना सीखें।”
“बहू, अरी ओ बहू!...शुभ समाचार सुन ले कि आज से तेरा पति पाँच सौ रुपए वेतन दिया करेगा तुझे। अब तक तो तू इस घर की मालिकिन थी, अब नौकर है—
उन्नति हुई या अवनति, बोल?”
—इसी संकलन से
स्वार्थ के संबंधों, व्यवहार की विषमताओं और मानव-मन की मजबूरियों में पथराए आपसी रिश्तों के फलस्वरूप हुए सामाजिक विघटन का पीड़ाजनक परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं और समय के सत्य से साहसपूर्ण साक्षात्कार कराते हैं ये एकांकी। परंपरागत आदर्शों और जीवन-मूल्यों के प्रदूषण से निकली आधुनिक रूढ़ियों में जकड़े सामाजिक संबंधों की सार्थक समीक्षा और च‌िंतन के नये आयाम प्रस्तुत करते हैं—
सामाजिक मूल्यों के एकांकी

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