Viraat Purush Shikshavid Nanaji
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ISBN: 9789351860792
INR 250/-
शिक्षा के बारे में नानाजी की कल्पना आम धारणाओं से बहुत भिन्न थी। किताबी शिक्षा को वे व्यावहारिक व मानव-प्रदत्त शिक्षा के सामने गौण मानते थे। उनके लिए शिक्षा व संस्कार एक-दूसरे के पूरक थे; एक-दूसरे के बिना अधूरे। उनका मत था कि शिक्षा व संस्कार की प्रक्रिया गर्भाधान से ही प्रारंभ हो जाती है और जीवनपर्यंत चलती है।