Viraat Purush Samajshastri Nanaji
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ISBN: 9789351860778
INR 400/-
एक समरस, संस्कारित, सुदृढ़, सबल, सशक्तीकृत समाज, नानाजी के विचारों व कर्तृत्व के केंद्र में था। सामाजिक जीवन में परस्पर पूरकता व सहजीवन नानाजी के लिए सामाजिक पुनर्रचना के मूलमंत्र थे। देशज मूल्यों के प्रति नानाजी का आग्रह, वर्तमान युग को समझने की उनकी ललक और दोनों में तालमेल बिठाने का जज्बा, नानाजी को अन्य महापुरुषों से अलग करते हैं।