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Sampoorna Laghu Kathayen

Sampoorna Laghu Kathayen

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ISBN: 9788173157141

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उस दिन उनके घर में हर्षोल्लास का माहौल था। उन्होंने गत वर्ष जो मकान खरीदा था, उसको तोड़ने पर दीवारों में से अपार अनर्जित संपदा उन्हें प्राप्त हुई थी। उस मकान का पूर्वकालिक स्वामी, कभी जिसके ऐश्वर्य और विलास की सीमा नहीं थी, सरकारी अस्तपाल के छोटे से कमरे में पड़ा था। वह अभी-अभी मृत्यु के मुँह से लौटा था। सभी मित्र-परिजन, यहाँ तक कि उसके पुत्र भी, उसे छोड़ गए थे। केवल उसकी पत्नी किसी स्कूल में पढ़ाकर किसी तरह उसकी देखभाल कर रही थी। घर लौटते समय उसने अपार संपदा पाए जाने का यह समाचार सुना और पति से कहा, “दीवारों में संपदा छिपी है—काश, यह बात हम जान पाते!” पति ने धीरे से कहा, “अच्छा हुआ, जो मैं न जान पाया। मैं अब जान पाया हूँ कि मैंने मकान बेचकर सुख पाया है। उसने मकान खरीदकर सुख खोया है। पसीना बहाकर जो तुम कमाकर लाती हो, उसी ने मुझे जीवन दिया है। इससे बड़ा ऐश्वर्य कुछ हो सकता है, मैं नहीं जानता।”
मंद-मंद मुसकराते हुए पत्नी ने पति की आँखों में झाँका और उनका माथा सहलाते हुए प्यार भरे स्वर में कहा, “मैं यही सुनना चाहती थी।”
—इसी पुस्तक से
मसिजीवी रचनाकार विष्णु प्रभाकरजी ने कहानियाँ, उपन्यास, नाटक आदि ही नहीं लिखे, बल्कि विपुल मात्रा में लघुकथाएँ भी लिखी हैं। ‘देखन में छोटी लगें, घाव करें गंभीर’ को चरितार्थ करनेवाली ये लघु कथाएँ मानवीय संवेदनाओं को स्पर्श करती हैं और रोचक, मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद हैं।

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