Savarkar Par Thope Huye Chaar Abhiyog
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ISBN: 9789352669653
INR 450/-
भारतीय इतिहास की सबसे कू्रर विडंबना यही रही है कि इसे कभी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से लिखा ही नहीं गया। वे चाहे नृशंस विदेशी आक्रांता हों अथवा चाटुकारिता के भूखे स्वदेशी शासक, सभी ने सदा ही, पंगु इतिहासकारों को लुभाकर अथवा डराकर अपनी प्रशस्ति लिखवाई और उसी को इतिहास कहा; जो यथार्थ में ‘उपहास’ या ‘परिहास’ से ऊपर उठ ही नहीं पाया।