कोई कहानी क्यों लोकप्रिय होती है, कहना आसान नहीं है। पर कुछ मापदंड अवश्य हैं। प्रस्तुत संग्रह में 1972 से लेकर 2014 तक की प्रकाशित कहानियाँ शामिल हैं। कहानियों का प्रथम प्रकाशन वर्ष कहानी के नीचे दिया हुआ है।
कोई कहानी क्यों लोकप्रिय होती है, कहना आसान नहीं है। पर कुछ मापदंड अवश्य हैं। प्रस्तुत संग्रह में 1972 से लेकर 2014 तक की प्रकाशित कहानियाँ शामिल हैं। कहानियों का प्रथम प्रकाशन वर्ष कहानी के नीचे दिया हुआ है। पुस्तक रूप में प्रकाशित होने से पहले हर कहानी किसी-न-किसी लोकप्रिय पत्रिका में प्रकाशित हुई थी; लोकप्रियता का एक कारण यह भी हो सकता है।
अन्य कई कहानियाँ जैसे मधुप पत्रकार (1975), तुक (1979), मेरे देश की मिट्टी अहा (1998), वो दूसरी (2003) और सितम के फनकार (2014) कहानियाँ आइरनी या कटाक्ष के कारण लोकप्रिय हुईं। ‘मधुप पत्रकार’ और ‘सितम के फनकार’ में प्रमुख पात्र पुरुष है, अन्य में स्त्री, पर उन्हें लोकप्रियता स्त्री अथवा पुरुष के सूक्ष्म चित्रण के कारण नहीं, बड़े लोगों के बड़बोलेपन में छिपे स्वार्थ, अर्थलोलुपता और अतिशय संवेदनहीनता का पर्दाफाश करने के कारण मिली। 1975 से 2014 के वक्फे में ‘मधुप पत्रकार’ से ‘सितम के फनकार’ तक, तंज या आइरनी का रंग-रूप तीखा होता गया और उसकी व्यंजना ज्यादा सूक्ष्म।
सुप्रसिद्ध कथाकार मृदुला गर्ग की कहानियाँ ऐसी हैं कि पाठक अपने जीवन और व्यक्तित्व से नितांत भिन्न, अब तक अनजान चेहरों को देख पहले यकीन नहीं करता, झुँझलाता है, पर आखिरकार रोमांचित होकर कहानी कई बार पढ़ जाता है।