‘‘ठीक है, जैसा तुम कहो; लेकिन मुझे नहीं लगता कि तुम्हें बीमारी के मामले में कोई ज्यादा तजुरबा है और तुम्हारी मदद करके मुझे खुशी ही होती! जब तुम्हारे पति की ऐसी हालत होती है तो अमूमन तुम क्या करती हो?’’
ठीक है, जैसा तुम कहो; लेकिन मुझे नहीं लगता कि तुम्हें बीमारी के मामले में कोई ज्यादा तजुरबा है और तुम्हारी मदद करके मुझे खुशी ही होती! जब तुम्हारे पति की ऐसी हालत होती है तो अमूमन तुम क्या करती हो?’’
‘‘मैं...मैं उन्हें सोने देती हूँ।’’
‘‘बहुत ज्यादा सोना भी सेहत के लिए बहुत अच्छा नहीं होता। तुम उन्हें कोई दवा नहीं देतीं?’’
‘‘ह...-हाँ।’’
‘‘तुम दवा के लिए उन्हें जगाती नहीं?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘अगली खुराक वह कब लेते हैं?’’
‘‘अभी दो घंटे तक नहीं।’’
वह महिला निराश हो गई—‘‘देखो, अगर तुम्हारी जगह मैं होती तो मैं और जल्दी-जल्दी दवा देती। अपने घरवालों के साथ मैं यही करती हूँ।’’
—इसी पुस्तक से
अमेरिका का वैभव, उसकी शक्ति, उसका सामर्थ्य समस्त विश्व को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। परंतु चकाचौंध भरे अमेरिकी जनजीवन को करीब से देखें तो वहाँ भी सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ हैं, जो संवेदनशील मन को झकझोर देती हैं। प्रस्तुत है ऐसी ही मर्मस्पर्शी कहानियों का संकलन।