‘ताना-बाना’ कथा-संग्रह की सभी कहानियाँ विभिन्न विषयों की होते हुए भी नारी-प्रधान हैं। इसमें उच्च-मध्यम वर्ग की महिलाओं की भावनाओं एवं समस्याओं का वर्णन है।
‘ताना-बाना’ सरल दस्तकारी में दक्ष पढ़ी-लिखी आभिजात्य परिवार की गृहलक्ष्मी का जीवन है। ‘चन्न चणे ते पानी पीना’ एक व्यंग्यात्मक कथा है। ‘कर्मणा वाधिका रस्ते’ में मंद बुद्धि पुरुष से ब्याही एक कर्मठ स्वाभिमानी युवती की कथा है, जिसने अपने जीवन में कर्म और कर्तव्य को ही प्राथमिकता दी है। ‘शाप-मुक्त’ कहानी की नायिका एक डॉक्टर पिता की गोद की लाडली युवती है, जो अपने पितामह श्वसुर द्वारा उसकी असलियत ज्ञात होते ही उपेक्षित कर दी जाती है; परंतु संपूर्ण कहानी का अंत ही पढ़ने से विदित होता है कि अंतत: ‘शाप-मुक्त’ कौन हुआ। ‘टिकुली’ हिंदू डॉक्टर युवती की मुसलमान सहपाठी से प्रेम विवाह कर घर बसाने की गाथा है। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनीं कि उसके माथे की टिकुली पर रीझनेवाला आधुनिक विचारों का उसका शौहर ‘टिकुली’ से ही चिढ़ने लगा। ‘त्रिनेत्र को चुनौती’ और ‘उतरन’ हास्य बिखेरती कहानियाँ हैं। छोटी और चुटकीपूर्ण होते हुए भी इनमें कुछ-न-कुछ उद्देश्य अवश्य ही है। ‘नैहर का नेह’ कहानी बहुत सरल, परंतु मर्मस्पर्शी है। ‘किलकारी’ अंतर्मन से निकली एक सरल, मासूम एवं प्यारी सी कहानी है।