“तुमने मेरे सिवा किसी और का इंतजार किया है?”
“हाँ।”
“किसका?”
“जीवन का।”
“मैं तुम्हें क्या नहीं दे सकता!”
“कोई किसी को सबकुछ नहीं दे सकता। कोई किसी से सबकुछ ले नहीं सकता। इसलिए जीवन में इतनी जिज्ञासा...”
“मैं लौट जाऊँगा।”
“तुम तो आए ही नहीं हो, क्योंकि जिससे मेरी मुलाकात हुई, वह समग्र ‘तुम’ नहीं हो। मुझे जो कुछ मिला है, वह प्राप्ति का आखिरी पड़ाव नहीं है।”
वे लौट जा रहे हैं। वे फिर आएँगे, दर्शन होंगे, पुनर्वार लौट जाएँगे, फिर आएँगे; पर इंतजार का अंत कहाँ! प्रतीक्षा-विहीन जो जीवन है, वह न तो जीवन है, न मृत्यु।
—इसी पुस्तक से
ओड़िया की प्रसिद्ध लेखिका प्रतिभा राय की ये कहानियाँ समाज और देश में फैली विद्रूपताओं पर करारी चोट करती हैं।
सामाजिक चेतना और मर्म का स्पर्श करती संवेदनशील कहानियों का पठनीय संग्रह।