ईश्वर ने अभी-अभी इस पृथ्वी की रचना की थी। उन्होंने एक कदम पीछे हटकर उसे मुग्ध होकर देखा। उन्होंने मनुष्यों, जानवरों, पेड़-पौधों व समुद्रों की रचना की थी और वह रहने के लिए एक अद्भुत स्थान लगता था। परंतु किसी चीज की कमी थी।
ईश्वर ने अभी-अभी इस पृथ्वी की रचना की थी। उन्होंने एक कदम पीछे हटकर उसे मुग्ध होकर देखा। उन्होंने मनुष्यों, जानवरों, पेड़-पौधों व समुद्रों की रचना की थी और वह रहने के लिए एक अद्भुत स्थान लगता था। परंतु किसी चीज की कमी थी। कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने छह भाइयों—दिन, रात, गरमी, सर्दी, बारिश और वायु—को बुलाया। उन्होंने छह भाइयों से नीचे धरती पर जाने और वहाँ के प्राणियों को एक सुखद व समृद्ध जीवन जीने में मदद करने का निर्देश दिया—‘तुम्हें पृथ्वी पर रहनेवाले प्राणियों के लिए आहार उपजाने में उनकी मदद करनी होगी, ताकि वे आनंदपूर्वक रह सकें। मैंने समय को दो भागों में बाँट दिया है—24 घंटे और 365 दिन। तुम्हें समय के इन भागों को आपस में बाँटना होगा, ताकि पृथ्वी के लोगों को वह सब मिल सके, जिसकी उन्हें जरूरत है।’
—इसी पुस्तक से