गंगा के मैदानी इलाके में एक किसान परिवार में जन्मा १५ साल का एक दुबला-पतला व शारीरिक रूप से बेहद कमजोर बच्चा अपने बालमन की कोरी ख्वाहिश को कविता के रूप में कागज पर उतारकर अपने जीवन के संघर्ष में आगे बढ़ जाता है।
गंगा के मैदानी इलाके में एक किसान परिवार में जन्मा १५ साल का एक दुबला-पतला व शारीरिक रूप से बेहद कमजोर बच्चा अपने बालमन की कोरी ख्वाहिश को कविता के रूप में कागज पर उतारकर अपने जीवन के संघर्ष में आगे बढ़ जाता है।
शायद उस समय उस मासूम बालक को नहीं पता था कि उसकी मसूरी में घूमने और हिमगिरी की चोटी पर तिरंगा फहराने की ललक भविष्य में कभी कागज के पन्नों से बाहर निकलकर यथार्थ में परिणत हो जाएगी।
आप इसे आश्चर्य कहें, या महज इत्तफाक कहें या अवचेतन मन की दिव्य शक्ति कहें (जिसके बारे में कवि द्वारा एक अन्य किताब ‘एवरेस्ट- सपनों की उड़ान’ में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है) या आप जो भी सोचें या विश्वास करें, उसके लिए आप स्वतंत्र हैं, परन्तु सच तो यह है कि उस बालक की ललक लगभग डेढ़ दशक बाद पूरी हुई, जब उसने भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के बाद प्रशिक्षण के दौरान मसूरी की सैर भी की और उसके बाद हिमगिरी की चोटी एवरेस्ट चढ़कर भारत का तिरंगा भी फहराया।
असली जीवन में उसकी ललक पूरी होने के बाद भी पुराने कागज पर लिखी उस कविता की ललक असल मायने में तब पूरी हुई, जब लगभग ढाई दशक बाद उसकी नजर उस धूल से लिपटी पुरानी पुस्तिका पर पड़ी जिसमें वह बचपन में कविता लिखा करता था, जिसे अब आपके साथ इस पुस्तक ‘ललक’ के माध्यम से इस आशा के साथ साझा किया जा रहा है कि आप भी जीवन में सपने देखना ना छोड़ें और अपने पर विश्वास रखें कि वो सपना भविष्य में कभी भी वास्तविकता में बदल सकता है ।
एक ऐसा कविता-संग्रह, जो आपको सपने देखने के लिए उत्साहित करने के साथ-साथ उन सपनों को पूरा करने लिए भी आपमें विश्वास भरता है ।