close

Bheegi Ret

Bheegi Ret

Availability: In stock

ISBN: 9789353222178

INR 750/-
Qty

हर लहर से पनपती
बनती-बिगड़ती परछाइयाँ
बहती हुई खुशियाँ
या फिर सिमटी हुई तनहाइयाँ
कभी लम्हों से झाँकते वो
हँसी के हसीं झरोखे
कभी खुद से ही छुपाते
खुद होंठों से आँसू रोके
कभी दिलरुबा का हाथ पकड़ा
तो कभी माँ की उँगली थामी

close